
माँ चंद्रघंटा का दिव्य रूप और उसका गूढ़ अर्थ
एक शांत तपस्विनी से लेकर एक प्रचंड योद्धा तक, देवी चंद्रघंटा की कथा आंतरिक जागरण, साहस और अपनी क्षमता की खोज की गाथा है। आइए नवदुर्गा के इस तीसरे स्वरूप में निहित गहन ज्ञान को जानें।
देवी चंद्रघंटा का तेजस्वी स्वरूप
माँ चंद्रघंटा का रूप स्वर्णिम आभा से युक्त है, और उनकी दस भुजाएँ हैं। वे अपने हाथों में त्रिशूल, गदा, धनुष, बाण, तलवार, कमल, घंटा, रुद्राक्ष माला और कमंडलु धारण करती हैं। उनकी एक भुजा अभय मुद्रा में है, जो भय के निवारण का प्रतीक है।उनके मस्तक पर अर्धचंद्र के आकार की घंटी सुशोभित होती है, और इसी कारण उन्हें “चंद्रघंटा” कहा जाता है। दुर्गा सप्तशती (जिसे देवी माहात्म्य भी कहा जाता है) में वर्णित है कि युद्ध के समय उनकी घंटी की गूंज इतनी प्रचंड थी कि राक्षस भयभीत और विक्षिप्त हो गए। उनके ललाट के मध्म में तीसरा नेत्र है। वे केसरिया रंग के वस्त्र धारण करती हैं और सिंह या बाघ पर सवार रहती हैं, जो उनकी शक्ति और साहस के प्रतीक हैं।
प्रतीकात्मक अर्थः मन और घंटा
चंद्रघंटा स्वरूप में देवी माँ के मस्तक पर घंटी के आकार का अर्धचंद्र सुशोभित है। चंद्र हमारे मन या मानस से भी जुड़ा है, जो सदैव उतार-चढ़ाव से गुज़रता रहता है। क्या यह हमारा सतत संघर्ष नहीं है कि हम अपने चंचल मन को वश में करें? ईर्ष्या, घृणा जैसे नकारात्मक विचार बार-बार उठते हैं, और हम उन्हें दूर करने के लिए संघर्ष करते हैं। मन हमारी छाया के समान है। हम अपने मन से नकारात्मकता को हटाने के लिए तरह-तरह के प्रयास करते हैं, लेकिन यह अधिक समय तक प्रभावी नहीं रहता। कुछ समय बाद मन फिर अपने पुराने स्वभाव में लौट आता है। इस संघर्ष में उलझने के बजाय, अपने मन से मित्रता करें और उसे एक दिशा दें। यह केवल आत्मचिंतन, अंतरदृष्टि और साधना के माध्यम से ही संभव है।
चंद्र विभिन्न भावनाओं और विचारों की भिन्न-भिन्न अवस्थाओं (जैसे चंद्र के विभिन्न कलाएं) का प्रतीक भी है। और घंटा? क्या आप ने कभी किसी घंटे से अलग-अलग ध्वनियाँ सुनी हैं? चाहे आप जैसे भी बजाएँ, घंटा केवल एक ही प्रकार की ध्वनि करता है। ठीक वैसे ही, जब अनेक भावनाओं और विचारों में उलझा हुआ मन एक बिंदु पर स्थिर होता है, तब भीतर की दिव्य ऊर्जा जाग्रत होकर ऊपर की ओर उठती है। अपने मन से भागिए मत, क्योंकि वह भी माँ का ही एक रूप है। प्रकृति में जो कुछ भी है, वह सब आदिशक्ति का ही स्वरूप है। यही रहस्य है, अच्छा या बुरा, मधुर या कटु, सबको एकरूप मानकर स्वीकार करना। देवी चंद्रघंटा का रूप हमें सिखाता है कि हम अपने भीतर के अशांत विचारों में सामंजस्य स्थापित कर उन्हें एकाग्र और सकारात्मक ऊर्जा में रूपांतरित कर सकते हैं। उनकी कथा यह स्मरण दिलाती है कि चुनौतियाँ बाधाएँ नहीं होतीं, बल्कि वे भीतर की सुप्त शक्ति को जागृत करने का अवसर होती हैं। जब हम उनकी कृपा का आवाहन करते हैं, तो हमारा मन और आत्मा एक दिशा में संगठित होकर बाहरी और भीतरी संघर्षों पर विजय प्राप्त करने के लिए सक्षम बनते हैं।
नवदुर्गा साधना
शक्तिशाली नवदुर्गा साधना में माँ चंद्रघंटा का आवाहन माँ दुर्गा के तीसरे स्वरूप के रूप में किया जाता है। वे हमारी आंतरिक शक्ति की प्रतीक हैं, जो कठिन परिस्थितियों में भी स्थिर और शांत चित्त बनाए रखने में हमारी सहायता करती हैं। संस्कृत में 'दुर्ग' का अर्थ है ‘किला’। जो भी उनकी शरण में आता है, वह उनकी कृपा और सुरक्षा के इस अद्वितीय किले से सदा सुरक्षित रहता है। माँ चंद्रघंटा साधकों के लिए ऐसा किला बन जाती हैं, जो उन्हें कभी निराश नहीं करती। यदि आप नव दुर्गा साधना आरंभ करना चाहते हैं, तो साधना ऐप के माध्यम से आप इसे कर सकते हैं।
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