माँ पार्वती से माँ चंद्रघंटा तक—एक दिव्य रूपांतरण

माँ पार्वती ने कैलाश पर्वत की शांत चोटियों पर अपने वैवाहिक जीवन का आरंभ किया। उनके दिन अपार आनंद में व्यतीत हो रहे थे। वे सनातन योगी, भगवान शिव की सेवा और देखभाल में लीन रहतीं। किन्तु संकट निकट था। राक्षस तारकासुर, जो भगवान शिव और शक्ति के मिलन से भयभीत था, उनकी शांति भंग करने का प्रयास करने लगा। उसने जटुकासुर, एक चमगादड़-राक्षस, को एक विशाल सेना के साथ कैलाश पर्वत पर भेजा। जैसे ही जटुकासुर और उसकी चमगादड़ों की सेना आकाश में झुंड बनाया, पूरे कैलाश में अंधकार छा गया। राक्षसों की सेनाएँ माँ पार्वती के नवसज्जित गृह को विध्वस्त करने लगीं। देवताओं और ऋषियों से भरे वातावरण में पली-बढ़ी माँ पार्वती के लिए राक्षसी प्रवृत्तियाँ नई थीं। उन्होंने भगवान शिव के परमभक्त और वाहन नंदी से सहायता माँगी, किन्तु वे कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे। इस बीच, भगवान शिव के गण, जो बार-बार जटुकासुर से पराजित हो रहे थे, अब माँ पार्वती की शरण में आ गए और उनसे रक्षा की प्रार्थना करने लगे।

 

देवी चंद्रघटा का उदय

उस क्षण माँ पार्वती को यह समझ आ गया कि अब उन्हें स्वयं कुछ करना होगा। उन्होंने भगवान शिव से मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना की। लेकिन गहन तपस्या में लीन भगवान शिव अविचल रहे। हालांकि, उन्होंने मौन रहकर माँ पार्वती को भीतर से दिव्य शक्ति प्रदान की। इससे प्रेरित होकर, माँ पार्वती ने अकेले ही जटुकासुर का सामना करने का निश्चय किया। वे अपनी गुफा से बाहर आईं और देखा कि आकाश जटुकासुर की चमगादड़ सेना से ढँका हुआ था। माँ पार्वती ने चंद्र देव से प्रार्थना की कि वे उनका मार्ग प्रकाशित करें। उन्होंने अपने मस्तक पर एक अर्धचंद्र धारण किया, जो उनके मार्गदर्शन का प्रतीक बना। तभी हिमालयी भेड़ियों का एक झुंड उनकी सहायता के लिए दौड़ पड़ा।

माँ पार्वती ने शीघ्र ही समझ लिया कि जटुकासुर की शक्ति उसकी चमगादड़ों की सेना से है। उसे कमजोर करने के लिए उन्होंने एक विशाल घंटा प्रकट किया। उस घंटे की गगनभेदी ध्वनि पूरे कैलाश में गूँज उठी। चमगादड़ तितर-बितर हो गए और आकाश पुनः प्रकाशमय हो गया। इस बीच, जब भेड़ियों ने जटुकासुर पर आक्रमण किया, माँ पार्वती ने अपना विशाल घंटा उठाकर उस पर प्रहार किया और एक ही वार में उसका अंत कर दिया। इस विजयी रूप में, मस्तक पर अर्धचंद्र और हाथ में घंटा लिए, माँ पार्वती को भगवान ब्रह्मा ने माँ चंद्रघंटा के रूप में प्रतिष्ठित किया।

बाद में, भगवान शिव ने माँ पार्वती से कहा कि उनका यह युद्ध केवल कैलाश की रक्षा के लिए नहीं था, बल्कि उनके भीतर नीहित शक्ति को जागृत करने का माध्यम भी था। उसी प्रकार, हमारे जीवन में आने वाली चुनौतियाँ हमें हमारी अंतर्निहित शक्ति से परिचय कराती हैं और हमारे आंतरिक विकास में सहायक होती हैं। माँ चंद्रघंटा की कथा हमें यह स्मरण कराती है कि हम प्रायः अपनी आंतरिक शक्ति को कम आंकते हैं और उसे केवल कठिन परिस्थितियों में ही पहचानते हैं।

Written by: Team Sadhana App
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