श्रीसूक्तम् क्या है?
यद्यपि इसका सबसे सामान्य उपयोग एक भक्तिमय वेदिक स्तोत्रम् के रूप में होता है, परंतु वास्तव में श्रीसूक्तम् में किसी के भाग्य को परिवर्तित करने की क्षमता है। यदि सभी परिस्थितियाँ समान हों और कोई मुझसे केवल भौतिक उन्नति के लिए एक साधना बताने को कहे, तो मैं बिना एक क्षण गंवाए उन्हें श्रीसूक्तम ही सौंप दूँगा।
( ओम स्वामी जी रचित पुस्तक ‘The Legend of the Goddess: Invoking Sri Suktam’ से उद्धरित )
संस्कृत शब्द ‘श्री’ का अर्थ आध्यात्मिक और भौतिक समृद्धि है। यह ऋग्वेद की देवी श्री से जुड़ा है, जिन्हें बाद के ग्रंथों में माँ लक्ष्मी के रूप में संदर्भित किया गया है। वे शुभता, भौतिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, शांति और समृद्धि की प्रतीक हैं। इसके अतिरिक्त, वे हमें इन आशीर्वादों की सराहना करने और इन्हें दूसरों के साथ साझा करने की बुद्धि भी प्रदान करती हैं।
‘श्री’ सनातन धर्म में स्त्रीत्व के सिद्धांत का प्रतिनिधित्व करता है। इसमें दो बीज मंत्र या बीज अक्षर सम्मिलित हैं: ‘श्’ जो पुरुष को दर्शाता है और ‘ह्री’ जो प्रकृति को दर्शाता है। पुरुष और प्रकृति का यह संयोजन ही श्री, यानी सृष्टि स्वयं, है।
संस्कृत शब्द ‘सूक्तम्’ का अर्थ है स्तुति का गीत। श्रीसूक्तम् का उल्लेख ऋग्वेद के पाँचवें मंडल में मिलता है, जो देवी माँ को समर्पित प्राचीनतम और सबसे प्रभावशाली स्तोत्रम् है। इसके माध्यम से हमें देवी माँ की कृपा प्राप्त होती है और हमारे जीवन में समृद्धि, आनंद तथा खुशी आती है। हमें जीवन का वास्तविक अर्थ ज्ञात होता है।
श्रीसूक्तम् में सोलह ऋचाएँ हैं, जिनकी एक समृद्ध आध्यात्मिक परंपरा और इतिहास है। ऋषियों ने गहन कठोर तपस्या के बाद इन ऋचाओँ को मानवता को प्रदान किया। संपूर्ण श्रीसूक्तम् को आज जैसा हम जानते हैं, उसे आकार लेने में हजारों वर्षों का समय लगा। पहली पंद्रह ऋचा पवित्र अग्नि ( जातवेद ) का आवाहन करती हैं, जो भक्त को स्वास्थ्य, धन, शांति, और समृद्धि प्रदान करने की प्रार्थना करती हैं। सोलहवां मंत्र फलश्रुति (एक पुण्यकारी ऋचा) है, जो श्रीसूक्तम् के 15 ऋचाओं के पाठ के लाभ की पुष्टि करता है।
श्रीसूक्तम् केवल एक विशेष सम्प्रदाय के लिए स्तोत्रम् नहीं है, बल्कि वेदिक स्तोत्रों में एकमात्र ऐसा स्तोत्रम् है जिसका उपयोग पूरे सनातन धर्म की पाँच प्रमुख शाखाओं में देवी माँ का आवाहन करने के लिए किया जाता है: शैव (भगवान शिव के भक्त), वैष्णव (श्री विष्णु के भक्त), गणपत्य (श्री गणपति के अनुयायी), और सौर (भगवान सूर्य के भक्त), शाक्त (देवी माँ के भक्त)। यह सभी शाखाओं को देवी माँ के प्रति अपनी भक्ति में एकजुट करता है।
शक्तिशाली श्रीसूक्तम् का पाठ कीजिए और सार्वभौमिक ऊर्जा के साथ एकाकार स्थापित कीजिए। इससे आप जीवन के चार पुरुषार्थों—धर्म (आध्यात्मिक संपदा), अर्थ (भौतिक संपदा), काम (इच्छाओं की पूर्ति से प्राप्त सुख) और मोक्ष (मुक्ति)—की प्राप्ति की दिशा में अग्रसर हो सकते हैं।
श्रीसूक्तम् का जप देवी माँ को कई प्रकार से पुकारने जैसा है। साधना ऐप पर श्रीसूक्तम् के जप से माँ लक्ष्मी का अभिषेकम् करके उन्हें अपनी भक्ति अर्पित करें।
Comments
Manne 960 din ki shree sukta sadhna nhi ki hai.to kya dipawali pr swami ji ke dwara ki Jane Wali sadhna kr sakti hun.
9916456768
Om
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