
श्रीसूक्तम् साधना करने के क्या लाभ हैं
मंत्र शुद्ध ध्वनियाँ हैं, जिनमें असीम शक्तियाँ निहित है। श्रीसूक्तम् की पंद्रह ऋचाएँ स्वयं माँ देवी का ध्वनिक रूप हैं। अनेक ऋषियों ने इन ऋचाओं का आवाहन करने के लिए हजारों वर्षों तक तपस्या की। इनमें शक्ति और ज्ञान दोनों निहित हैं। श्रीसूक्तम् हमें इस संसार में विद्यमान आनंद और सौंदर्य को देखने की दृष्टि प्रदान करता है। और वास्तव में, यह दैवी माँ ही हैं जो आनंद और सौंदर्य की इन तरंगों का प्रतिनिधित्व करती हैं।
श्रीसूक्तम् साधना का परम उद्देश्य आंतरिक एवं बाह्य दोनों प्रकार की दरिद्रता का नाश कर, लोगों को उनके जीवन में पूर्णता का अनुभव करने में सक्षम बनाना है। यह आंतरिक जागरण के लिए एक साधना है। जब आप माँ लक्ष्मी का आवाहन और आलिंगन करते हैं, तो आप समृद्धि, सम्पन्नता, अच्छे स्वास्थ्य और भौतिक उन्नति का स्वागत करते हैं।
अपनी पुस्तक ‘प्राचीन मंत्र विज्ञान’ में, ओम स्वामी जी ने श्रीसूक्तम् साधना के अनुभव और उसके अपने जीवन पर गहन प्रभाव का उल्लेख किया है। साल 2008 में, स्वामी जी भारत में एक व्यवसाय का संचालन कर रहे थे और उन्होंने एक फैक्ट्री खरीदी। जब फैक्ट्री तैयार हो रही थी, मशीनों की खरीदी और कर्मचारियों की भर्ती आदि का कार्य चल रहा था, तब स्वामी जी को 16 रातों तक श्रीसूक्तम् साधना करने का अवसर मिला। साल 2010 में उन्होंने संसार का परित्याग दिया।
दिलचस्प बात यह है कि जो व्यवसाय उन्होंने अपने एक साझेदार के साथ स्थापित किया था, वह आगामी वर्षों में फल-फूल गया और उसमें अत्यंत लाभ हुआ। वे कहते हैं,
“बेशक, यह केवल श्रीसूक्त साधना के कारण नहीं था, बल्कि मेरे साझेदार और कर्मचारियों के अथक परिश्रम, सूझबूझ और लगातार क्रियान्वयन के कारण भी था। फिर भी, जब बीज दिव्य और स्वस्थ हो, तो उसके वृक्ष में बदलने की संभावना अविश्वसनीय रूप से अधिक रहती है।”
( पुस्तक ‘प्राचीन मंत्र विज्ञान’ से उद्धरित)
स्वामी के मार्गदर्शन में श्रीसूक्तम् साधना करने पर आप बीज मंत्रों या बीज अक्षरों के साथ श्रीसूक्तम् के छंदों का जप करेंगे। जिस प्रकार एक बीज एक पेड़ के आनुवंशिक कोड को समाहित करता है, बीज या बीज मंत्र एक एकल-अक्षर मंत्र है जिसमें उसके देवता का सार होता है। श्रीसूक्तम् की मुख्य ऋचा से पहले और बाद में बीज मंत्र लगाने से यह और भी अधिक शक्तिशाली और प्रभावी हो जाता है।
यद्यपि, यह स्मरण रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि मंत्र साधना केवल किसी मंत्र को कई बार दोहराने के बारे में नहीं है। इसे पूरी आस्था और भक्ति के साथ किया जाना चाहिए। निष्ठा से की गई साधना कभी व्यर्थ नहीं जाती और उचित समय पर अपना फल देती है।

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Sri shuktam
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