माँ स्कंदमाता: योद्धा पुत्र की योद्धा माँ

माँ स्कंदमाता: योद्धा पुत्र की योद्धा माँ

शिव और शक्ति का मिलन

जब माँ पार्वती ने देवी चंद्रघंटा का शक्तिशाली रूप धारण कर चमगादड़ रूपी राक्षस जटुकासुर का वध किया, तो पूरे राक्षस लोक में हलचल मच गई। तारकासुर भय से काँप उठा। एक समय वह स्वयं को सुरक्षित समझता था। उसे ब्रह्मा जी से यह वरदान मिला था कि केवल भगवान शिव और माँ शक्ति का पुत्र ही उसका वध कर सकता है। लेकिन अब, जब उसका सबसे विश्वस्त सहायक नष्ट हो चुका था, तो वह संकट उसे वास्तविक लगने लगा। तारकासुर जान गया कि अब समय बदल रहा है।

उधर, समस्त देवता भगवान शिव और माँ शक्ति के उस पुत्र की प्रतीक्षा कर रहे थे, जो असाधारण साहस, शक्ति और बुद्धिमत्ता से युक्त हो। ऐसा एक दिव्य पुत्र उत्पन्न करने के लिए भगवान शिव और माँ शक्ति ने कठोर तपस्या की, ताकि वे अपनी तपोशक्ति को एक दिव्य रूप में प्रकट कर सकें। जब भगवान शिव और माँ पार्वती ध्यान में लीन थे, तब उनके ललाट से एक शक्तिपुंज (आग का विशाल गोला) उत्पन्न हुआ। यह शक्तिपुंज उनकी संयुक्त ऊर्जा से अग्नि के एक प्रचंड गोले में परिवर्तित हो गया। भगवान शिव ने अग्निदेव को आदेश दिया कि वे इस शक्तिपुंज को किसी सुरक्षित स्थान पर ले जाएँ। लेकिन यह इतना उष्ण और तेजस्वी था कि स्वयं अग्निदेव भी उसे सँभाल नहीं सके और गलती से उसे गंगा में प्रवाहित कर दिया। यह शक्तिपुंज इतना प्रचंड था कि माँ गंगा भी उसे धारण नहीं कर सकीं। अंततः उन्होंने इसे एक शरवन (सरकंडों के जंगल) में रख दिया।

 

स्कंद का जन्म

जैसे ही माँ गंगा ने उस शक्तिपुंज को सरकंडों (शरवन) पर रखा, एक सुंदर शिशु प्रकट हुआ। उस बालक का स्वरूप इतना दिव्य और आकर्षक था कि कृतिका नक्षत्र की सात सबसे उज्ज्वल तारिकाओं में से छह ने उसे देखा और उनके हृदयों में मातृत्व के भाव जागृत हो गए। उनके मन में उस बालक की माँ बनने की तीव्र इच्छा हुई। सभी उसे पालना और दूध पिलाना चाहतीं थीं। यह प्रेमपूर्ण विवाद तब सुलझा, जब उस बालक ने अपने पाँच और सिर प्रकट किए। इस प्रकार उसके कुल छह सिर हो गए, ताकि वह अपनी सभी छह माताओं को एक साथ देख सके और वे प्रत्येक उसके एक-एक स्वरूप को पोषण दे सकें। कुछ समय बाद, माँ पार्वती सरकंडों के उस वन में पहुँचीं और उस दिव्य बालक को स्नेहपूर्वक अपनी गोद में ले लिया। सरकंडों में प्राप्त होने के कारण ही इस बालक को स्कंद नाम दिया गया।

 

भगवान स्कन्द का शास्त्रों और साहित्य में उल्लेख

कालिदास की महाकाव्य रचना कुमारसंभव में, और अनेक अन्य कथाओं की भाँति, देवताओं ने भगवान स्कन्द के जन्म के लिए बहुत प्रतीक्षा की। भगवान स्कन्द ही वे एकमात्र देवता थे, जो तारकासुर, सिंहमुख और सुरपद्म जैसे राक्षसों का वध कर सकते थे। इन राक्षसों को यह वरदान प्राप्त था कि केवल भगवान शिव का पुत्र ही उनका वध कर सकता है। शिव और शक्ति के संयोग से जन्मे भगवान स्कन्द का अवतरण इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए हुआ था।

भगवान स्कन्द के कई नाम हैं, और प्रत्येक नाम उनके जीवन की किसी एक कथा को दर्शाता है। वे ‘कार्तिकेय’ कहलाते हैं क्योंकि कृतिकाओं (छः दिव्य माताओं) ने उनका लालन-पालन किया। वे ‘गंगेय नाम से जाने जाते हैं क्योंकि माँ गंगा ने उन्हें अपनी शरण दी। ‘शरवनभव’ इसलिए कहे जाते हैं क्योंकि उनका जन्म सर (सरकंडों) से भरे सफेद कमलों वाले सरोवर में हुआ। वे ‘कुमार’ हैं अर्थात् सदा युवा रहने वाले। वे सौंदर्य, शक्ति और आकर्षण के प्रतीक हैं। माँ गौरी के पुत्र होने के कारण वे ‘गौरीतनय’ भी कहे जाते हैं।

दक्षिण भारत में उन्हें ‘मुरुगन’ और ‘सुब्रमण्यम’ के नाम से अत्यंत श्रद्धा और प्रेम से पूजा जाता है। उनका नाम स्कन्द का एक अर्थ  ‘दुखों का नाश करने वाला’ भी है। वे अपने भक्तों के कष्टों का अंत करते हैं। भगवान स्कन्द के बाल्यकाल का वर्णन कई पुराणों में प्राप्त होता है। कहा जाता है कि उन्होंने स्वयं भगवान शिव को प्रणव (पवित्र ॐ ध्वनि) का रहस्य समझाया। इस कारण उन्हें ‘स्वामिनाथन’ भी कहा जाता है—अर्थात् ‘स्वामी (भगवान शिव) को भी उपदेश देने वाले गुरुरूप स्वामी।’

 

भगवान स्कन्द: दिव्य योद्धा देवता

जब तारकासुर से युद्ध का समय आया, तो भगवान शिव ने स्कन्द को अनेक विशिष्ट अस्त्र प्रदान किए। स्कन्द ने उन्हें अपनी ग्यारह भुजाओं में धारण किया। बारहवीं भुजा में उन्होंने ‘शक्ति अस्त्र’ या ‘वेल’धारण किया, जो माँ पार्वती ने उन्हें दिया था। युद्ध के समय माँ पार्वती ने बुद्धिमत्ता से उनका मार्गदर्शन भी प्रदान किया। इसी वेल’ शस्त्र को धारण करने  के कारण भगवान स्कन्द को प्रेमपूर्वक ‘वेल मुरुगन’ कहा जाता है।

भगवान स्कन्द तीन शक्तियों के समन्वय का प्रतीक हैं, इच्छा शक्ति ( संकल्प की शक्ति), ज्ञान शक्ति (बोध की शक्ति) और क्रिया शक्ति ( धर्मयुक्त कर्म की शक्ति)। जब शिव तत्त्व इन तीनों शक्तियों से एकाकार होता है, तब जो प्रकट होता है वही ‘ भगवान स्कन्द’ है। हम अक्सर कहते हैं कि ईश्वर सर्वत्र है, वे सर्वव्यापी है। लेकिन जब जीवन में कोई कठिन परिस्थिति सामने आती है, तो हम क्या करते हैं? उस समय हम कौन-सा ज्ञान अपनाते हैं? उस समस्या को सुलझाने के लिए केवल ज्ञान नहीं, क्रिया की आवश्यकता होती है। अर्थात्, ज्ञान को कर्म में रूपांतरित करना आवश्यक होता है। इसलिए, जब हम ऐसा कोई कार्य करते हैं जो ज्ञान से प्रेरित होता है, तो उसमें स्कन्द तत्त्व प्रकट होता है। और यही कारण है कि माँ के अनेक स्वरूपों में एक स्वरूप स्कन्दमाता है, जो स्कन्द तत्त्व की जननी हैं।

Written by: Team Sadhana App
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