
समर्पित राजकुमारी और अडिग योगी की अद्भुत कथा
भगवान शिव की अनवरत तपस्या
भगवान ब्रह्मा के वरदान से बलशाली हुआ ताड़कासुर ब्रह्मांडीय संतुलन के लिए एक बड़ा संकट बन गया। उसके अत्याचार बढ़ते गए, जिससे देवता चिंतित हो उठे। अब भगवान शिव और शक्ति का मिलन सृष्टि की रक्षा के लिए आवश्यक हो गया था। लेकिन देवी सती के देह त्याग के बाद, भगवान शिव गहन तपस्या में लीन हो गए थे। ऐसे में कौन या क्या उनके हृदय में दिव्य मिलन की अग्नि जला सकता था, जब वे सभी इच्छाओं का त्याग कर कई प्रकाश-वर्ष दूर थे। भगवान शिव संसारिक बंधनों से पूर्णतः विरक्त बने रहे, यहाँ तक कि आदिशक्ति की उपस्थिति से भी। माँ शैलपुत्री, जिन्हें देवी पार्वती भी कहा जाता है, हिमवान और मैना की प्रिय पुत्री, कोई साधारण राजकुमारी नहीं थीं, वे देवी सती का पुनर्जन्म थीं। देवी शैलपुत्री भगवान शिव से पुनर्मिलन और एक दिव्य भविष्यवाणी को पूर्ण करने के लिए अवतरित हुई थीं।
वे राजमहल के सुख-सुविधाओँ में पली-बढ़ीं। एक पर्वत-पुत्री के रूप में, वे दृढ़ संकल्प, गहन प्रेम और सम्पूर्ण भक्ति की प्रतीक थीं। जब महर्षि नारद से महाराज हिमवान ने यह भविष्यवाणी सुनी कि उनकी पुत्री भगवान शिव की अर्द्धांगिनी बनेंगी, तो उन्होंने हिमालय में तपस्या में लीन भगवान शिव के दर्शन करने जाना प्रारंभ किया। महाराज हिमवान अत्यंत आनंदित हुए कि महादेव ने उनके राज्य को अपनी दिव्य उपस्थिति से पावन किया है। वे प्रतिदिन भगवान शिव के पास जाते और नित्य पूजन अर्पित करते। हिमवान की भक्ति से प्रसन्न होकर, भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया कि जो भी हिमालय की पर्वतीय श्रृंखलाओं में ध्यान और साधना करेगा, उसे साधना में निश्चित सफलता प्राप्त होगी। आज भी, कई योगी मंत्र सिद्धि प्राप्त करने के लिए हिमालय में साधना करते हैं। आप श्री ओम स्वामी द्वारा लिखित 'Thirteen Months In The HiMaalayas' पुस्तक का अध्ययन कर सकते हैं, जो उनकी अद्वितीय साधना और मंत्र सिद्धि की यात्रा के दुर्लभ और मंत्रमुग्ध करने वाले दृश्यों का सुंदर वर्णन करती है। उन्होंने इनमें से कई साधनाएँ हिमालय में की थीं।
भगवान शिव के प्रति माँ पार्वती का सेवा भाव और समर्पण
धीरे-धीरे माँ पार्वती ने यह निश्चय किया कि वे प्रतिदिन भगवान महादेव की सेवा करेंगी। वे प्रेमपूर्वक उस गुफा को स्वच्छ करतीं जहाँ महादेव तपस्या में लीन होते थे। वे फूल, फल और अन्य पूजन सामग्री एकत्र करतीं और उन्हें पूर्ण श्रद्धा से अर्पित करतीं। माँ पार्वती तपस्या में लीन भगवान शिव की सभी आवश्यकताओं का ध्यान रखती थीं। महादेव उनकी भक्ति से अत्यंत प्रसन्न होते और प्रतिदिन उन्हें आशीर्वाद देते। परंतु, माता पार्वती के प्रति उनके मन में कोई भाव जागृत नहीं हुए। उनके हृदय में कोई परिवर्तन नहीं हुआ।
भगवान शिव द्वारा कामदेव को दंड
इसी दौरान, देवता अधीर हो उठे।भगवान शिव की ओर से शक्ति को पुनः प्राप्त करने में कोई रुचि नहीं दिखाई दे रही थी। दूसरी ओर ताड़कासुर के अत्याचार तेजी से बढ़ते जा रहे थे। अंततः इंद्रदेव ने प्रेम के देवता कामदेव (मन्मथ) को भगवान शिव के हृदय में माता पार्वती के प्रति प्रेम उत्पन्न करने के लिए भेजा। एक दिन, जब देवी पार्वती भगवान शिव की गुफा की सफाई कर रही थीं, उसी समय कामदेव ने अपना प्रेमबाण शिव के हृदय पर चला दिया। एक क्षण के लिए भगवान शिव के भीतर इच्छा की एक तरंग उठी और उन्होंने अपने सामने खड़ी त्रिपुरसुंदरी (माँ पार्वती) के सौंदर्य को देखा। लेकिन अगले ही क्षण, उन्हें यह विचार आया कि यह भावना उनके भीतर कैसे उत्पन्न हुई। उन्हें तुरंत समझ आ गया कि यह किसी बाहरी हस्तक्षेप का परिणाम है। चारों ओर देखने पर उन्होंने एक वृक्ष के पीछे कामदेव को धनुष लिए देखा, जो कि दूसरा बाण चलाने ही वाले थे। महादेव क्रोधित हो उठे। उनके ललाट से एक भीषण अग्नि प्रकट हुई, जिसने कामदेव को भस्म कर दिया। और अगले ही क्षण, भगवान शिव वहाँ से अंतर्धान हो गए। कामदेव की राख आकाश में उड़ी, और स्वर्ग और पृथ्वी पर गहन मौन छा गया। भगवान शिव के चले जाने से देवी पार्वती अकेली रह गईं लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उनका संकल्प और भी दृढ़ हो गया, और उनकी भक्ति और गहन हो गई। उधर देवताओं को यह बोध हुआ कि केवल उनकी योजना विफल ही नहीं हुई, बल्कि महादेव का क्रोध भी उनके ऊपर आ गया। फिर भी, समय के साथ नियति का खेल चलता है, और वह प्रेम जो दिव्य उद्देश्य से उत्पन्न हुआ, अपने मार्ग पर हमेशा आगे बढ़ता ही रहा।
माँ पार्वती को अपनी भक्ति प्रमाणित करने के लिए कौन सी कठिन परीक्षाओं का सामना करना होगा? क्या महादेव का हृदय अंततः उनकी अनंत शक्ति के लिए कोमल होगा? और क्या वह दिव्य प्रेम जो उनके मिलन का कारण बनेगा, अपने उद्देश्य को प्राप्त कर पाएगा? इस अद्वितीय गाथा के अगले अध्याय में जानिए दिव्य प्रेम, सर्वोच्च बलिदान और भक्ति की शक्ति की कहानी।
नवदुर्गा साधना
शक्तिशाली नवदुर्गा साधना में, माँ ब्रह्मचारिणी का आवाहन नवदुर्गा के दूसरे स्वरूप के रूप में किया जाता है। संस्कृत में 'दुर्ग' का अर्थ है "किला"। जो भी उनकी शरण में आता है, वह उनकी कृपा और सुरक्षा के इस अद्वितीय किले से सदा सुरक्षित रहता है। माँ ब्रह्मचारिणी साधकों के लिए ऐसा किला बन जाती हैं, जो उन्हें कभी निराश नहीं करती। यदि आप नव दुर्गा साधना आरंभ करना चाहते हैं, तो साधना ऐप के माध्यम से आप इसे कर सकते हैं।
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- ✅ हर दिन का मंत्र प्रतिदिन अपडेट किया जाएगा।
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