रुद्राभिषेक क्या है और इसके लाभ क्या हैं?

इस लेख में आप रुद्राभिषेक और उसके लाभ के बारे में विस्तार से जानेंगे ।
शास्त्रों में कहा गया है: "अलंकारप्रियो विष्णुः, अभिषेकप्रियः शिवः"।
अर्थात्, भगवान विष्णु को अलंकरण और सुंदर वस्त्र प्रिय हैं, जबकि भगवान शिव को अभिषेक अत्यंत प्रिय है। अधिकांश शिव मंदिरों में शिवलिंग के ऊपर तांबे या पीतल का एक जलपात्र लटका होता है, जिसमें नीचे की ओर एक छिद्र होता है। इस छिद्र से निरंतर जलधारा शिवलिंग पर गिरती रहती है।
शिव और अभिषेक का संबंध
जब क्षीर सागर का मंथन हुआ, तो सबसे पहले हलाहल (विष) निकला, जिसने सृष्टि के अस्तित्व को संकट में डाल दिया। केवल महायोगी शिव ही इसके घातक प्रभाव से सबकी रक्षा कर सकते थे। भगवान शिव ने हलाहल को पीकर उसे अपने विशुद्धि चक्र (कंठ) में धारण लिया। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि हलाहल से उत्पन्न ताप के कारण ही भगवान शिव अभिषेक से अत्यंत प्रसन्न होते हैं । इससे उनके शरीर को शीतलता अनुभव होती है।
रुद्राभिषेक भगवान शिव के रुद्र स्वरूप की आराधना करने का एक शक्तिशाली वैदिक अनुष्ठान है। इसे श्री रुद्रम् के शक्तिशाली मंत्रोंच्चारण के साथ किया जाता है।
अभिषेक के माध्यम से आत्म-शुद्धिकरण
संस्कृत शब्द "अभिषेक" का अर्थ है ‘स्नान कराना’। इस अनुष्ठान में भगवान के विग्रह (मूर्ति) पर विभिन्न सामग्रियाँ जैसे जल, दूध, शहद, दही, फलों के रस, घी, हल्दी, शक्कर, कुंकुम आदि चढ़ाए जाते हैं या उनसे स्नान कराया जाता है। यह प्रक्रिया मंत्रों और प्रार्थनाओं के साथ संपन्न की जाती है। समस्त वैदिक अनुष्ठान हमें पंचतत्वों (पृथ्वी,जल,अग्नि,वायु,आकाश) से जोड़ते हैं। अभिषेक के माध्यम से जल तत्व का आवाहन किया जाता है ताकि भक्त इस तत्व के साथ सामंजस्य स्थापित कर सकें।
अभिषेक केवल भौतिक अनुष्ठान नहीं है। बाहरी तौर पर देखने में यह लग सकता है कि भक्त सिर्फ मूर्ति या शिवलिंग को स्नान करवा रहा है, लेकिन यह चेतना की शुद्धि के लिए की गई एक गहन साधना है । अभिषेक आत्म-शुद्धिकरण प्रदान करता है जिससे हम हृदय में अपने इष्ट को स्थापित करने के लिए एक उत्तम स्थान निर्मित करते हैं ।
आदि शंकराचार्य द्वारा रचित शिव मानस स्तोत्रम् में इसी भक्ति भाव को व्यक्त किया गया है:
"आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं।"
इसका अर्थ है कि जब मन भगवान शिव के साथ एकाकार स्थापित कर लेता है, तब यह मानव शरीर उनका मंदिर बन जाता है, और हमारी चेतना माँ पार्वती (गिरिजा) के रूप में शिवलिंग का रूप धारण कर लेती है।
शिव तत्व से जुड़ाव
रुद्राभिषेक करते समय भक्त सर्वव्यापी, सर्वज्ञ भगवान शिव के प्रति जागरूक हो जाता है। भगवान शिव की ऊर्जा (शिव तत्व) हर व्यक्ति और वस्तु में व्याप्त है। भगवान शिव सृष्टि के— दृश्य एवं अदृश्य— सभी पहलुओं में निहित हैं। श्री रूद्रम के श्लोक बताते हैं कि भगवान शिव विरोधाभास में भी उपस्थित होते हैं।
"नमो ज्येष्ठाय च कनिष्ठाय च।
नमः पूर्वजाय चपरजाय च।"
(नमकम, अनुवाक 6)
अर्थात,
"उन्हें नमन है, जो ज्येष्ठ हैं और कनिष्ठ भी हैं,
जो कारण हैं और परिणाम भी।"
रुद्राभिषेक के माध्यम से भक्त सर्वोच्च ब्रह्म के रूप में रुद्र-शिव से प्रार्थना कर उनकी कृपा और आशीर्वाद मांगते हैं।
महाशिवरात्रि पर रुद्राभिषेक का महत्व
महाशिवरात्रि भगवान शिव और माँ शक्ति (पार्वती) के दिव्य मिलन का उत्सव है। शिव आत्मा हैं और शक्ति कुंडलिनी हैं। अज्ञानता, नकारात्मकता और बाधाओं को दूर करने के साथ ही आध्यात्मिक उन्नति के लिए यह अवसर अत्यंत शुभ माना जाता है। महाशिवरात्रि पर रुद्राभिषेक कर आप अपने जीवन में भगवान शिव की कृपा और सुरक्षा को आमंत्रित कर सकते हैं।
श्री रूद्रम का दिव्य जप आंतरिक एवं बाह्य नकारात्मकता को समाप्त करता है और हमें आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव करवाता है। इस महाशिवरात्रि (26 फरवरी, 2025, शाम 6.30 बजे IST) को ओम स्वामी जी के साथ रुद्राभिषेक कर इसका अनुभव करें। रुद्राभिषेक का लाइव (सीधा) प्रसारण श्री बद्रिका आश्रम से किया जाएगा।
ॐ नमः शिवाय।
1 comment
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