
शिव पंचाक्षरी मंत्र का अर्थ एवं उसकी महिमा क्या है?
इस लेख में आपको शक्तिशाली पंचाक्षरी मंत्र के अर्थ एवं महत्व के बारे में विस्तार से जानने को मिलेगा।
पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत शिव सन्निधौ |
शिवलोकमवाप्नोति, शिवेन सह मोदते ||
(-श्लोक VI, शिव पंचाक्षरी स्तोत्रम्, आदि शंकराचार्य)
जो भक्त भगवान शिव के समक्ष उनके पंचाक्षरी मंत्र का जप करता है, वह भगवान शिव के पुण्य लोक को प्राप्त होता है, और सदैव आनंदपूर्वक उनके साथ निवास करता है।
सरल लेकिन गहन मंत्र
अधिकांश लोग, यहाँ तक कि जो मंत्र साधना के प्रारंभिक चरण में हैं, वे भी इस सरल लेकिन शक्तिशाली पंचाक्षरी मंत्र "नमः शिवाय" से भलीभांति परिचित होते हैं। वेदों और पुराणों में अत्यंत श्रेष्ठ माने जाने वाले पंचाक्षर मंत्र वास्तव में "महामंत्र" है। इसमें वेदों का सार समाहित है।
भगवान शिव को "भोले भंडारी" भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है - वे जो भक्ति से आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं। पंचाक्षरी मंत्र का जप उनका आवाहन करने और उनकी कृपा प्राप्त करने का एक शक्तिशाली तरीका है। चूंकि यह मंत्र स्वयं भगवान शिव का ही स्वरूप है, इसलिए पंचाक्षरी साधना करने से जन्म और मृत्यु के अंतहीन चक्र से मुक्ति प्राप्त होती है।
पंचाक्षरी-पाँच शक्तिशाली अक्षर
सिद्ध शैव और शैव सिद्धांत परंपराओं में, जो शैव संप्रदाय का हिस्सा है, इस मंत्र को भगवान शिव की सार्वभौमिक एकता का प्रतिबिंब माना जाता है। इस मंत्र के पांच अक्षर, संसार के पांच तत्वों (पंच महाभूतों), पृथ्वी, आकाश, जल, अग्नि और वायु का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो प्रकृति में हर वस्तु के निर्माण के आधारभूत घटक हैं।
न-पंचाक्षरी मंत्र का पहला अक्षर है न। यह पंच तत्वों में पृथ्वी तत्व का प्रतिनिधित्व करता है, और इसे पवित्र करता है।
मः – जल का प्रतिनिधित्व करने वाला है, और इसे पवित्र करता है।
शि – अग्नि तत्व को सक्रिय करता है।
वा – वायु तत्व को सक्रिय करता है।
य – आकाश तत्व को सक्रिय करता है।
पंचाक्षरी मंत्र के बीजाक्षरों का जप ब्रह्मांड की आदि (शाश्वत) ध्वनि ऊँ के साथ करने से हमें इन पंचतत्वों पर नियंत्रण स्थापित करने में सहायता मिलती है। यह हमें प्रकृति और स्वयं के साथ सामंजस्य निर्मित करने में मदद करता है।
वेदों का हृदय
इस पवित्र पंचाक्षरी मंत्र को वेदों का हृदय भी कहा जाता है। यह मंत्र श्री रुद्रम के सार को अभिव्यक्त करता है, जो कृष्ण यजुर्वेद के तैत्तिरीय संहिता में पाया जाता है। पंचाक्षरी मंत्र नमकम के आठवें अनुवाक में "नमः शिवाय च शिवतराय च" के रूप में आता है, जिसका अर्थ है: "शिव, जो मंगलमय (शुभ) हैं, उन्हें नमस्कार, और शिवतर, जो उनसे भी अधिक शुभ हैं, उन्हें भी नमस्कार।"
भगवान शिव की स्तुति समस्त ब्रह्मांडीय तत्वों के परम स्वामी और ब्रह्मांड की परम शक्ति के रूप में की जाती है। श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र में पंचाक्षरी मंत्र के गहन अर्थ और महत्त्व को विस्तार से समझाया गया है।
तमिल ग्रंथ तिरुमंत्रम् में भी इस मंत्र की महानता का विस्तृत वर्णन मिलता है। शिव पुराण (विद्येश्वर संहिता, अध्याय 1.2.10) और वायवीय संहिता (अध्याय 13) में भी "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का उल्लेख किया गया है।
पंचाक्षरी मंत्र के सकारात्मक प्रभाव
तमिल शैव ग्रंथ तिरुवक्कम में पंचाक्षरी मंत्र के गहरे और सकारात्मक प्रभावों की व्याख्या की गई है। भगवान शिव पूर्ण वैराग्य (निर्लिप्तता) की स्थिति का प्रतीक हैं। वे बाहरी संसार के दुखों और कष्टों से अप्रभावित रहते हैं। वे करुणामय, शांत और समस्त आसक्तियों से मुक्त हैं। पंचाक्षरी मंत्र के साथ भगवान शिव के नाम का ध्यान करके, भक्त अपने भीतर भगवान शिव के उन्हीं असाधारण गुणों को जागृत कर सकते हैं। यह मंत्र मृत्यु के भय को समाप्त करता है और मोक्ष (मुक्ति) प्रदान करता है। स्वयं भगवान शिव ने माँ पार्वती को इसकी महानता बताते हुए कहा:
"हे वरानने! पंचाक्षरी मंत्र की महिमा को सौ करोड़ वर्षों में भी पूर्ण नहीं कहा जा सकता। यह सभी मंत्रों का राजा है। अतः इसे संक्षेप में सुनिए। जब संपूर्ण जगत मुझमें विलीन होकर नष्ट हो जाता है, तब सभी वेद और शास्त्र इसी पंचाक्षर मंत्र में समाहित हो जाते हैं। उस समय वे नष्ट नहीं होते, क्योंकि वे मेरी शक्ति के संरक्षण में आश्रय प्राप्त करते हैं।"
श्रावण माह भगवान शिव का आवाहन करने के लिए सर्वाधिक पावन समय है। 22 जुलाई 2025 से 11 अगस्त 2025 तक साधना ऐप पर पंचाक्षरी साधना करें और महादेव से अपना संबंध गहरा करें।
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