कर्म: सनातन धर्म की आत्मा

कर्म: सनातन धर्म की आत्मा

सनातन धर्म में कर्म के सिद्धांत को अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। यह सिद्धांत कहता है कि प्रत्येक कार्य, चाहे वह विचार, वाणी या व्यवहार के माध्यम से किया गया हो, अपना प्रभाव अवश्य छोड़ता है। हम जैसा कर्म करते हैं, वैसा ही फल प्राप्त होता है। 

राजा हरिश्चंद्र की कथा (मार्कंडेय पुराण, महाभारत और अन्य ग्रंथों में उल्लेखित) इसका एक कालजयी और प्रेरक उदाहरण है। सत्य और धर्म के पालन के लिए उन्होंने घोर कष्ट सहे, परिवार का वियोग सहा, किन्तु अंतिम क्षण तक सत्य का परित्याग नहीं  किया। उनकी अविचल निष्ठा और तपस्या के फलस्वरूप उन्हें अंततः दिव्य आशीर्वाद प्राप्त हुए और खोया हुआ राज्य भी उन्हें पुनः प्राप्त हो गया। श्रीमद्भगवद्गीता में, जो कि सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, में श्रीकृष्ण ने इस कर्म सिद्धांत को अत्यंत स्पष्टता और गहनता से समझाया है:

"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥"
(  श्रीमद्भगवद्गीता 2.47)

अर्थात् — "तेरा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल में नहीं; तू कर्मफल का कारण मत बन और अकर्मण्यता में भी आसक्त मत हो।"

यह साधक को सिखाता है कि वह निःस्वार्थ भाव से, फल की चिंता किए बिना, केवल कर्तव्यभाव से कर्म करे। ऐसा कर्म ही अंततः उसे बंधन से मुक्त कर मोक्ष की ओर अग्रसर करता है।

सनातन धर्म एक ऐसा प्रकाशपुंज है जो प्रत्येक आत्मा को उसकी अनंत यात्रा में पथप्रदर्शन करता है। यह सिखाता है कि हर जीव के भीतर वही दिव्य तत्व है जिसे विभिन्न साधनाओं, नामों और रूपों से जाना जा सकता है। सत्य और धर्म के मार्ग पर चलकर, कर्म में निःस्वार्थता और जीवन में भक्ति, सेवा और ज्ञान के समावेश से साधक आत्म-साक्षात्कार की ओर अग्रसर होता है।

 

Written by: Team Sadhana App
We are proud Sanatanis, and spreading Sanatan values and teachings, our core mission. Our aim is to bring the rich knowledge and beauty of Sanatan Dharm to every household. We are committed to presenting Vedic scriptural knowledge and practices in a simple, accessible, and engaging manner so that people can benefit and internalise them in their lives.
Back to blog

Comments

No comments yet. Be the first to share your thoughts.

Leave a comment