विष्णु सहस्रनाम की गौरवमयी गाथा
इस लेख में आप विष्णु सहस्रनाम के इतिहास और इसके महत्व के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।
आदि शंकराचार्य की अल्प लेकिन गहन अध्ययन अवधि समाप्त हो गई थी। वे सनातन धर्म को पुनर्जीवित और सुदृढ़ करने के अपने लक्ष्य को पूर्ण करने के लिए उत्सुक थे। इस हेतु वे अपने गुरु, श्री गोविंदपादाचार्य का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उनके पास गए।
किंतु, गोविंदपादाचार्य के पास अपने शिष्य के लिए एक अंतिम अभ्यास कार्य शेष था। उन्होंने अपने शिष्य शंकर को आदेश दिया कि वह विष्णु सहस्रनाम पर एक विस्तृत भाष्य लिखे। गुरु के आदेश का पालन करते हुए शिष्य शंकर ने इस कार्य को आरंभ किया और एक सप्ताह के भीतर ही भाष्य लिख दिया।
उसे पढ़कर श्री गोविंदपादाचार्य अत्यधिक गौरवान्वित हुए। उनके आनंद की कोई सीमा नहीं थी क्योंकि उन्हें विश्वास था कि उनके शिष्य अब दुनिया की किसी भी प्रकार की कठिनाइयों का सामना करने के लिए पूर्णतः तैयार हैं।
हजारों वर्षों से भारतवर्ष में लोग अपने दिन का आरंभ विष्णु सहस्रनाम—श्री विष्णु के एक हज़ार पवित्र नामों—के मधुर जप से करते आ रहे हैं ।
नहं वसामि वैकुंठे योगिनां हृदये न च |
मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद ||
यह श्लोक पद्मपुराण के उत्तरखंड (92.21) से लिया गया है। इस श्लोक में भगवान विष्णु महर्षि नारद से कहते हैं:
'हे नारद मुनि! मैं न तो वैकुंठ में निवास करता हूँ और न ही योगियों के हृदय में ही रहता हूँ। मैं तो वहीं रहता हूँ, जहाँ प्रेमाकुल होकर मेरे भक्त मेरे नाम का कीर्तन (जप) करते हैं। मैं सदा लोगों के अंतःकरण में विद्यमान हूँ ।'
आरँभ एवं प्रथम पाठ
कुरु वंश के पितामह भीष्म कुरुक्षेत्र में बाणों की शय्या पर मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे थे। वे निरंतर भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान कर रहे थे। इसी समय, श्रीकृष्ण ने पांडवों में सबसे ज्येष्ठ युधिष्ठिर को भीष्म पितामह से आध्यात्मिक दीक्षा प्राप्त करने का आदेश दिया। युधिष्ठिर ने पितामह से प्रश्न किया कि संसार के सर्वोच्च भगवान, परम ईश्वर कौन हैं। भीष्म पितामह बोले कि सर्वश्रेष्ठ, सबसे शुभ, देवताओं के प्रमुख और सभी प्राणियों के पिता वही हैं जो परम हैं—श्री विष्णु।
इसके बाद, भीष्म पितामाह ने श्री विष्णु के दिव्य नामों का गुणगान करते हुए विष्णु सहस्रनाम का उच्चारण किया। इन दिव्य नामों के श्रवण में लीन पांडव स्तोत्रम् को लिख या स्मरण नहीं कर सके। जब युधिष्ठिर ने बाद में अपने भाइयों से पूछा, तो किसी को भी स्तोत्रम् याद नहीं था। चिंतित होकर, पांडवों ने समाधान के लिए श्रीकृष्ण की ओर देखा।
श्रीकृष्ण ने बताया कि पूरे ब्रह्मांड में केवल एक ही दिव्य शक्ति हैं जो पांडवों को विष्णु सहस्रनाम का स्मरण करने और दोहराने की शक्ति दे सकते हैं—महादेव। बिना समय गंवाए, सहदेव ने अपनी स्फटिक माला, जो क्रिस्टल मोतियों से निर्मित एक जप माला थी, लेकर भगवान शिव की प्रार्थना शुरू कर दी। स्फटिक माला में यह अद्भुत गुण होता है कि यह शांत वातावरण में ध्वनि को अपने भीतर समाहित कर सकती है। इसी गुण के कारण, महादेव की कृपा से सहदेव धीरे-धीरे पूरे सहस्रनाम को वैसा ही दोहरा सके जैसा पितामह भीष्म ने सुनाया था ।
प्रत्येक नाम का गहन अर्थ
कूर्म पुराण महाभारत को सभी धर्मशास्त्रों में श्रेष्ठ मानता है। महाभारत में दो महत्वपूर्ण ग्रंथ सम्मिलित हैं: श्रीमद्भगवद्गीता और विष्णु सहस्रनाम, जिनका नियमित रूप से पाठ और जप किया जाता है।विष्णु सहस्रनाम का अर्थ इतना गहन है कि इसके प्रत्येक नाम के सौ भिन्न-भिन्न अर्थ हो सकते हैं। वास्तव में, यह कहा जाता है कि भगवद्गीता इस वृक्ष की जड़ है, जबकि विष्णु सहस्रनाम उसका फल है।
विष्णु सहस्रनाम का स्वरूप
श्री विष्णु सहस्रनाम तीन भागों में विभाजित है: पूर्व भाग (प्रारंभिक हिस्सा), स्तोत्रम् भाग (मुख्य स्तोत्र), और उत्तर भाग (समापन भाग) ।
स्तोत्र भाग के 107 श्लोकों से हमें श्री विष्णु के 1,000 दिव्य और पवित्र नाम प्राप्त हुए हैं। इन तीन मुख्य भागों के अतिरिक्त, विष्णु सहस्रनाम में सात ध्यान श्लोक भी हैं। ये ध्यान श्लोक भक्तों को भगवान विष्णु के दिव्य रूप का ध्यान और उनकी आराधना करने में सहायता करते हैं ।
श्री विष्णु ब्रह्म का सबसे शुभ और मंगलमय रूप हैं। उनका आवाहन विवाह और नामकरण संस्कार जैसे शुभ अवसरों पर किया जाता है, और अंतिम संस्कार के समय भी उनसे प्रार्थना की जाती है।यज्ञ के आरंभ में हम भगवान विष्णु से प्रार्थना करते हैं और अनुष्ठान के अंत में उसके सभी प्रभावों को उन्हें ही समर्पित कर देते हैं ।
बेहतर कल्पनाशीलता और आत्म-शुद्धीकरण
विष्णु सहस्रनाम में भगवान विष्णु के भौतिक स्वरूप और अन्य गुणों का सुंदर वर्णन है । इस स्तोत्रम् का जप करने या सुनने से हमारा मन भगवान विष्णु के दिव्य स्वरूप की कल्पना करने, उन्हें धारण करने और उनकी आराधना करने में सक्षम होता है।शास्त्रों का मत है की कलियुग में मोक्ष प्राप्ति का एकमात्र साधन ईश्वर के पवित्र नाम का जप है। जप हमारे मन को शुद्ध और शांत करता है। साथ ही, यह हमें सत्य, प्रेम, शांति, सदाचार, और अहिंसा जैसे मूल्यों को अपने जीवन में अपनाने में सहायक है।
सहस्रनाम की शक्ति एवं प्रभाव
सहस्रनाम, अर्थात् ईश्वर की दिव्य महिमा। यह प्राचीन ऋषियों द्वारा विकसित एक प्रभावशाली माध्यम है, जो अनंत और असीम परम ब्रह्म को किसी रूप में वर्णित करने या उसे समझाने का प्रयास करता है। श्री विष्णु सहस्रनाम पर अपनी टिप्पणी में स्वामी चिन्मयानंद कहते हैं:
"श्री विष्णु के ये हज़ार नाम हमें ज्ञात से अज्ञात की ओर इंगित करने वाले हज़ार स्पष्ट संकेत प्रदान करते हैं। इन नामों पर चिंतन करने से हमारी श्रद्धा गहन होती है, हमारी भक्ति व्यापक होती है, और सर्वव्यापी परम ईश्वर (भगवान विष्णु) के प्रति हमारी समझ विकसित और दृढ़ होती है।"
(स्वामी चिन्मयानंद: विष्णु सहस्रनाम, चिन्मया प्रकाशन 2024, पृष्ठ i)
श्री विष्णु सहस्रनाम के फलश्रुति में, श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, जो भक्त विष्णु सहस्रनाम का पाठ करके मेरी स्तुति करना चाहता है, किंतु यदि वह केवल एक श्लोक (107 श्लोकों में से एक श्लोक) का ही उच्चारण कर सके, तो भी मैं उस उपासना को संपूर्ण सहस्रनाम के जप के समान ही स्वीकार करता हूँ। इसमें तनिक भी संशय नहीं है।
किसी भी साधना का आनंद तब कई गुना बढ़ जाता है जब हम अपने इष्ट से जुड़ने में सक्षम होते हैं। विष्णु सहस्रनाम भक्त को भगवान विष्णु के दिव्य स्वरूप की कल्पना करने और उनकी भक्ति में लीन होने में सहायता करता है ।
ॐ नमो नारायणाय नमः ।
Comments
No comments yet. Be the first to share your thoughts.
Leave a comment