भगवान विष्णु का भव्य स्वरूप एवं महिमा
इस लेख में आपको सृष्टि के संरक्षक और पालनहार भगवान विष्णु की महिमा के बारे में जानने को मिलेगा ।
‘सर्वं विष्णुमयं जगत’
वेदों में कहा गया है, ‘संपूर्ण ब्रह्मांड भगवान विष्णु की अभिव्यक्ति है।’ श्री विष्णु समस्त ज्ञान के स्रोत हैं। 'विष्णु' शब्द संस्कृत के 'विश' धातु से उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ है सर्वव्यापक शक्ति, इसका एक अन्य अर्थ है 'प्रवेश करना'। भगवान विष्णु वह अद्वितीय दिव्य सत्ता हैं जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त हैं। वे सर्वत्र उपस्थित हैं जैसे कि हर कण में, हर तत्व में, और प्रत्येक जीव के अस्तित्व में। अत: 'विश्वम्’ विष्णु ही हैं, अर्थात सम्पूर्ण सृष्टि उन्हीं में समाहित है। श्री विष्णु सहस्रनाम का पहला श्लोक भी इस सत्य को बताता है 'विश्वं विष्णुर्वषट्कारो'। वे 'वषट्कारा' हैं, जिन्हें यज्ञों में आमंत्रित किया जाता है और जिनके लिए आहुतियाँ दी जाती हैं।
वे अपने भक्तों के लिए पिता की तरह हैं और उनके सभी कष्टों और संतापों को हर लेते हैं। इसलिए, श्री विष्णु का एक दिव्य नाम श्री हरि है। श्री हरि अपने भक्तों के तीन प्रकार के कष्टों (तापों) को समाप्त कर देते हैं – आध्यात्मिक ताप(कष्ट) , आधिदैविक (अन्य प्राणियों या बाहरी शक्तियों से उत्पन्न कष्ट), और आधिभौतिक (अपने शरीर और मन से उत्पन्न कष्ट) ।
जगत के पालनहार
श्री विष्णु का स्वरूप अत्यंत मनमोहक है। वे अपने चार हाथों में शंख, सुदर्शन चक्र (दिव्य चक्र), गदा और पद्म (कमल) धारण करते हैं। ये चार आयुध भौतिक प्रकृति के तीन गुणों का प्रतीक हैं: शंख सत्त्वगुण का संकेत करता है, चक्र रजोगुण का प्रतिनिधित्व करता है, गदा तमोगुण का प्रतीक है, और चौथा—कमल—गुणातीत अवस्था का द्योतक है, जो इन तीनों गुणों से परे है।
श्री विष्णु शंख धारण करते हैं, जो विशाल समुद्र से उत्पन्न हुआ है, जहाँ वे निवास करते हैं। शंख शून्यता और पवित्रता का प्रतीक है, क्योंकि इसमें निवास करने वाले जीव (जैसे केकड़ा या घोंघा) इसे त्याग चुके होते हैं। यह ‘प्रणव’ के शुभ नाद का प्रतिध्वनित करने के लिए सदैव तत्पर रहता है। जब हम अपने अहंकार का पूर्णतः त्यागकर शुद्ध हो जाते हैं, तभी दिव्यता हमारे भीतर दिव्यता जाग्रत होती है और हमारे माध्यम से इस संसार में प्रकट होती है।
श्री विष्णु का दूसरा आयुध सुदर्शन चक्र है, जिससे वे हमारी इच्छाओं के बंधनों का अंत करते हैं। हम भौतिक संसार के चक्र में निरंतर उलझे रहते हैं, और भगवान अपने सुदर्शन (शुभ एवं दिव्य) चक्र से हमारी वासनाओं और आसक्तियों का नाश कर हमें मुक्ति की ओर ले जाते हैं।
कई बार, हमारी जड़ हो चुकी प्रवृत्तियों को तोड़ने के लिए केवल चक्र ही पर्याप्त नहीं होता। इसलिए, श्री विष्णु कौमोदकी गदा धारण करते हैं, जिससे वे हमारे नकारात्मक प्रवृत्तियों पर प्रहार कर उन्हें समाप्त कर देते हैं।
भगवान का चौथा आयुध कमल (पद्म) है, जो इस बात का प्रतीक है कि कैसे जीवात्मा सांसारिक कीचड़ से ऊपर उठकर निर्मलता और पवित्रता में खिल सकती है। संसार में कमलवत स्थिति प्राप्त करने के लिए कठोर अनुशासन और गहन आध्यात्मिक मंथन की आवश्यकता होती है।
कोई भी भक्त श्री विष्णु के दिव्य स्वरूप का आयुध सहित ध्यान कर और विष्णु सहस्रनाम स्तोत्रम् का जप कर उनके साथ गहन आध्यात्मिक संबंध स्थापित कर सकता है।
‘’ॐ नमों नारायणाय’’
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