उच्छिष्ट गणपति साधना: द्वैत से ऊपर उठने का मार्ग

उच्छिष्ट गणपति साधना: द्वैत से ऊपर उठने का मार्ग

साधना आत्म-शुद्धि की एक सतत प्रक्रिया है। यह हमें दृढ़ संकल्प विकसित करने में मदद करती है और हमारी पूर्व धारणाओं पर प्रश्न उठाने को प्रेरित करती है, वे धारणाएँ जिनके साथ हम बड़े हुए हैं या जो हमने समाज से ग्रहण की हैं। अपने संपूर्ण जीवनकाल में हम शुद्ध–अशुद्ध, सही–गलत, अच्छा–बुरा और ऐसी ही अन्य द्वैतों के जाल में उलझे रहते हैं।

परंतु, सत्य सदैव संदर्भ पर आधारित होता है। कभी-कभी दृष्टिकोण में परिवर्तन हमारी मान्यताओं को चुनौती दे सकता है और यहाँ तक कि उन्हें परिवर्तित भी कर सकता है। साधना हमें आत्म-अन्वेषण के मार्ग पर ले जाती है। हालाँकि, साधना की प्रक्रिया अपने आंतरिक और बाह्य नियमों के कारण जटिल भी प्रतीत हो सकती है। ज़रा सोचिए—यदि कोई ऐसी शक्तिशाली साधना हो, जिसमें आपको शुद्धि संबंधी नियमों का पालन न करना पड़े, और जहाँ साधक अपने भोजन में बचा हुआ अंतिम कौर ही देवता को प्रसादस्वरूप अर्पित करे? 

हम यहाँ श्री उच्छिष्ट गणपति की परिवर्तनकारी साधना की बात कर रहे हैं। इस साधना को “सभी तंत्रों का सार” और श्रीविद्या साधना के लिए देवी माँ की कृपा प्राप्त करने का प्रथम सोपान कहा गया है। उच्छिष्ट गणपति साधना वैदिक और तांत्रिक साधनाओं के संगम-स्थान पर स्थित है। इसका उद्देश्य है, पूर्व धारणाओं से मुक्त होकर आगे बढ़ना।

 

उच्छिष्ट गणपति कौन हैं?

उच्छिष्ट गणपति, श्री गणेश का तांत्रिक स्वरूप हैं। उनके इस स्वरूप का उल्लेख अथर्ववेद में ‘उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्तम्’ के अंतर्गत किया गया है, जहाँ उन्हें सृष्टि के उपरांत शेष बची हुई या गुप्त ऊर्जा के रूप में वर्णित किया गया है। ‘उच्छिष्ट’ शब्द का अर्थ है—शेष, अवशिष्ट या बचा हुआ ‘उच्छिष्ट’ का रहस्यमय और गूढ़ अर्थ ईशावास्य उपनिषद में दिए गए पूर्ण ब्रह्म के सिद्धांत में निहित है—

‘ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥’

‘वह (परब्रह्म) पूर्ण है, यह (जगत) भी पूर्ण है। पूर्ण से पूर्ण की उत्पत्ति होती है, और पूर्ण से पूर्ण को निकालने पर भी जो शेष बचता है, वह भी पूर्ण ही रहता है।’

सृष्टि या ब्रह्मांड, एक समग्र संपूर्णता है, जो सृजनात्मक शक्ति से प्रकट होती है। यह शक्ति स्वयं देवी हैं, जो स्वयं में भी पूर्ण है। यह सृजनात्मक शक्ति आध्यात्मिक तत्व, अर्थात भगवान शिव, से उत्पन्न होती है। वे स्थिर परम चेतना, सगुण ब्रह्म, हैं, जो स्वयं में पूर्ण हैं। सगुण ब्रह्म, परब्रह्म से प्रकट होते हैं, जो फिर से स्वयं में पूर्ण हैं। सृष्टि के प्रलय के उपरांत जो शेष पूर्ण रह जाता है, वही उच्छिष्ट ब्रह्म या उच्छिष्ट गणपति हैं—परम सत्य। वे शिव और शक्ति के सभी शेष अंशों में भी विद्यमान हैं।

 

साधना द्वारा संचित कर्मों से मुक्ति

हमारे प्रत्येक कार्य (कर्म) के बाद कुछ न कुछ अवशेष रह जाता है। इसे एक उदाहरण से समझते हैं, हर पीढ़ी अपनी अगली पीढ़ी के लिए कुछ न कुछ छोड़कर जाती है। यदि उनका सही उपयोग हो तो वे प्रगति और सफलता का कारण बनते हैं; यदि उपेक्षित रह जाएँ तो संघर्ष और अव्यवस्था पैदा करते हैं।

आज हम अपने अतीत के सामूहिक कर्मों का ही परिणाम भुगत रहे हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के सफल प्रयोगों और प्रगति से हम लाभान्वित होते हैं, वहीं बीते समय के गलत निर्णयों के कारण युद्ध, संकट और प्राकृतिक आपदाओं का सामना भी करते हैं।

इसी प्रकार, अनेक जन्मों के कर्मों के अवशेष हमारी चेतना में जमा होते जाते हैं। वास्तविक विकास तभी संभव है जब हम सोचने, महसूस करने और व्यवहार करने के पुराने ढर्रों को छोड़ दें।

यदि हम अपने पुराने तरीकों को ही बार-बार दोहराते हैं तो हम विकास का आभास तो कर सकते हैं, पर वास्तव में वहीं अटके रहते हैं। हर बार जब हम ज्ञात पुराने से अज्ञात नये की ओर बढ़ते हैं, तो पुराने अवशेषों का उपभोग या निष्कासन आवश्यक है, ताकि वे फिर से हमारी प्रवृत्तियों में न लौट आएँ। पुराने संस्कारों और सोच के जमे हुए साँचे को तोड़ना आवश्यक है, ताकि मस्तिष्क में नए तंत्रिका-मार्ग बन सकें।

कर्म तीन प्रकार के होते हैं—

  1. संचित कर्म 
  2. प्रारब्ध कर्म 
  3. आगामी कर्म

प्रारब्ध कर्म, संचित कर्म का वह हिस्सा है जो पूरी तरह पके हुआ फल जैसा है और जिसका अनुभव हम इसी जीवन में करते हैं। आगामी कर्म वे हैं जो इस जीवन में हम अर्जित करते हैं और जो आगे संचित कर्म में जुड़ जाते हैं। संचित कर्म वास्तव में "उच्छिष्ट कर्म" है, जिसका निवारण श्री उच्छिष्ट गणपति की मंत्र-साधना द्वारा किया जा सकता है।  यह साधना हमें मुक्ति और हमारे वास्तविक स्वरूप की अनुभूति कराती है—जो उसी परम दिव्य के समान पूर्ण और अनंत है, जिनसे हम उत्पन्न हुए हैं।

 

शास्त्रों में उच्छिष्ट गणपति साधना

उच्छिष्ट गणपति साधना का उल्लेख अथर्ववेद, ईशोपनिषद, मुद्गल पुराण, हेरमेखला तंत्र, श्रीविद्यार्णव तंत्र, रुद्रयामल तंत्र और गणपत्य तंत्र में मिलता है। आदि शंकराचार्य और कांची के महापेरियावा ने भी परम तत्व से एकत्व प्राप्त करने के लिए उच्छिष्ट गणपति साधना का अभ्यास किया था। शास्त्रों के अनुसार, श्री उच्छिष्ट गणपति के मंत्रों के प्रभाव से ही कुबेर, जो समस्त भौतिक संपत्तियों के देव-कोषाध्यक्ष हैं, को यह पद प्राप्त हुआ। इसी प्रकार विभीषण को भी इन मंत्रों के प्रभाव से लंका का राजपद मिला। आगामी गणेश चतुर्थी (27 अगस्त) इस साधना को प्रारंभ करने के लिए अत्यंत शुभ अवसर है। आज ही साधना ऐप पर पंजीकरण करें और अधिक जानकारी के लिए हमारे ब्लॉग पढ़ते रहें।

Written by: Team Sadhana App
We are proud Sanatanis, and spreading Sanatan values and teachings, our core mission. Our aim is to bring the rich knowledge and beauty of Sanatan Dharm to every household. We are committed to presenting Vedic scriptural knowledge and practices in a simple, accessible, and engaging manner so that people can benefit and internalise them in their lives.
Back to blog

Comments

Seema Chaudhary September 02, 2025

उच्छिष्ट गणपति साधना karna chahti hu

Vineeta Nishad September 02, 2025

🕉A heartfelt gratitude towards the source of True Sadhana.🔔..🐚..📿.Offering sincere thanks to revered Guruji Om Swami and Sri Ganapati Bhagwan without whom it would have been impossible to progress in life spiritual as well as physical world..😃🙏

Leave a comment

Do NavDurga Sadhana

Worship the 9 nine forms of Devi through the secret and powerful NavDurga Sadhana.