
माँ कूष्मांडा: जिनकी दिव्य मुस्कान से सृष्टि का सृजन हुआ
यह कथा कल्पांत (एक कल्प के अंत) की है, जब संपूर्ण ब्रह्मांड एक अनंतहीन अंधकारमय शून्य से अधिक कुछ नहीं था। उसी शून्य से एक दिव्य प्रकाश प्रकट हुआ, जो धीरे-धीरे एक सुंदर स्त्री रूप में परिवर्तित हो गया, वे थीं माँ कूष्मांडा। जब उन्होंने अपनी दिव्य मुस्कान बिखेरी, तो वह कोमल प्रकाश जीवन में परिवर्तित होने लगा। आकाशगंगाएँ, ग्रह, वनस्पतियाँ, जीव-जंतु, कीट-पतंगे और मनुष्य सब उसी मुस्कान से प्रकट हुए। यह आद्यशक्ति माँ आदि-पराशक्ति थीं, जिन्होंने जीवन का पुनः संचार करने के लिए माँ कूष्मांडा का रूप धारण किया। ‘कूष्मांडा’ शब्द तीन भागों से मिलकर बना है, ‘कु’ अर्थात थोड़ा, ‘ऊष्मा’ अर्थात या ऊर्जा, और ‘अंड’ अर्थात अंडा। वे सृजनात्मक ब्रह्मांडीय अंड के जन्म की जननी हैं। माँ कूष्माण्डा ही समस्त ऊर्जा, प्रकाश, ऊष्मा और जीवन की मूल स्रोत हैं। उन्हें "मुस्कुराती हुई माँ" भी कहा जाता है।
सूर्यमंडल में निवास करने वाली देवी माँ
माँ कूष्मांडा ने ही इस सृष्टि की रचना की और अपनी शक्ति को सूर्यमंडल में स्थापित किया, जिससे सूर्य को प्रकाश और ऊष्मा प्रदान करने की शक्ति मिली। वे सूर्य के हृदय में निवास करने वाली प्रकाश-स्त्रोत हैं। इसलिए उनका एक नाम ‘सूर्यमंडल अंतर्वार्धिनी’, है अर्थात् वे देवी जो सूर्यमंडल के भीतर वास करती हैं। माँ कूष्मांडा शुद्धिकरण और तपस्या की जननी हैं, क्योंकि वे अपने प्रकाश और ताप से हमारे समस्त कर्मों को शुद्ध करती हैं।
महाशक्तियों की रचना
सृष्टि की रचना के पश्चात, ऐसा कहा जाता है कि माँ कूष्मांडा ने केवल अपनी मुस्कान से ही अन्य शक्तिशाली देवियों की रचना की। उन्होंने सर्वप्रथम तीन महाशक्तियों की रचना की।
महाकाली: माँ कूष्मांडा की बाईं आँख से एक प्रचंड रूप वाली स्त्री प्रकट हुईं, जिनका रंग घोर काला था। उनके दस मुख, दस भुजाएँ और दस चरण थे, और वे विविध आयुधों से सुसज्जित थीं। माँ कूष्मांडा ने उन्हें महाकाली नाम दिया।
महालक्ष्मी: माँ की तीसरी आँख से एक तेजस्विनी देवी प्रकट हुईं, जिनका रंग पिघले हुए लावे के जैसा था। उनका रूप एक योद्धा के समान था और वे केसरी वस्त्र धारण किए थीं। उनकी अठारह भुजाओं में विविध शस्त्र थे। माँ ने उन्हें महालक्ष्मी नाम दिया।
महासरस्वती: माँ की दाईं आँख से एक शांत, सौम्य और मुस्कुराती हुई देवी प्रकट हुईं जिनका रंग दुग्ध के समान सफेद था। वे आठ भुजाओं से युक्त थीं और स्वच्छ श्वेत वस्त्र व आभूषणों से सुशोभित थीं। माँ कूष्मांडा ने उन्हें महासरस्वती नाम दिया।
इन तीनों महाशक्तियों ने देवों और देवियों की त्रिमूर्ति की रचना की:
- महाकाली से भगवान शिव और सरस्वती की उत्पत्ति हुई।
- महासरस्वती से भगवान विष्णु और शक्ति का जन्म हुआ।
- महालक्ष्मी से भगवान ब्रह्मा और लक्ष्मी की उत्पत्ति हुई।
इसके बाद, माँ कूष्मांडा ने संतानों को एक-दूसरे के साथ विवाह सूत्र में बांधकर सृष्टि का संतुलन सुनिश्चित किया। माँ कूष्मांडा ने भगवान शिव को माँ शक्ति के साथ, भगवान विष्णु को माँ लक्ष्मी के साथ, तथा भगवान ब्रह्मा को माँ सरस्वती के साथ दांपत्य रूप में जोड़ा। नवरात्रि का पावन समय माँ कूष्मांडा, नवदुर्गा के चौथे स्वरूप, की उपासना और आशीर्वाद प्राप्त करने का अत्यंत पावन अवसर है।
नवदुर्गा साधना
शक्तिशाली नवदुर्गा साधना में माँ कूष्मांडा का आवाहन चौथे दिन किया जाता है। उनकी कृपालु दृष्टि अंधकार को दूर कर शांति और सद्भाव प्रदान करती है। अपनी स्नेहमयी मुस्कान से वे भक्त के चित्त को शुद्ध करती हैं और उसका पालन-पोषण करती हैं।
संस्कृत में 'दुर्ग' का अर्थ है "किला"। जो भी उनकी शरण में आता है, वह उनकी कृपा और सुरक्षा के इस अद्वितीय किले से सदा सुरक्षित रहता है। माँ कूष्मांडा साधकों के लिए ऐसा किला बन जाती हैं, जो उन्हें कभी निराश नहीं करती। यदि आप नव दुर्गा साधना आरंभ करना चाहते हैं, तो साधना ऐप के माध्यम से आप इसे कर सकते हैं।
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