भगवान दत्तात्रेय : त्रिदेव का गुरु-स्वरूप
इस ब्लॉग में आप जीवन में गुरु के महत्व के साथ-साथ गुरु-तत्त्व के साकार स्वरूप भगवान दत्तात्रेय के जन्म और उनकी अद्भुत महिमा को गहराई से समझ पाएंगे।
गुरुबुद्ध्यात्मनो नान्यत् सत्यं सत्यं वरानने ।
तल्लाभार्थं प्रयत्नस्तु कर्तव्यश्च मनीषिभिः ॥ २५॥
(गुरु गीता)
(भावार्थ — गुरु कोई और नहीं, बल्कि बुद्धि का ही आत्म-स्वरूप है। यही सत्य है; इसमें कोई संशय नहीं। अतः इस आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए बुद्धिमानों को प्रयास करना चाहिए।)
गुरु कौन है?
गुरु वह सिद्ध पुरुष हैं, जो साधक का मार्गदर्शन करते हैं और उसकी आध्यात्मिक यात्रा में आने वाली बाधाओं को पार कराने में सहायक बनते हैं। संस्कृत शब्द ‘गुरु’ में ‘गु’ का अर्थ अंधकार है, और ‘रु’ का अर्थ हटाने वाला है। गुरु वह है जो अज्ञान के अंधकार को समाप्त करता है।
चर्चित भक्ति गायक और बाबा नीम करौली के शिष्य कृष्णदास ने एक साक्षात्कार में कहा था—
‘क्योंकि हम भौतिक शरीर में रहते हैं और स्वयं को शरीर से ही जोड़कर देखते हैं, इसलिए हमें लगता है कि गुरु भी केवल एक भौतिक (मानव) शरीर हैं। लेकिन ऐसा नहीं है।’
यह संक्षिप्त कथन गुरु की महानता को उजागर करता है। हमारी सीमित सोच यह समझ ही नहीं सकती कि गुरु की कृपा और आशीर्वाद कितने प्रभावी ढंग से कार्य करते हैं।
‘गुरु कौन है?’—इस प्रश्न का उत्तर केवल निःस्वार्थ भक्ति और पूर्ण समर्पण से ही जाना जा सकता है। यह वही भक्ति है, जिसे हम अपने घर और मंदिरों में स्थित देवताओं की मूर्तियों के प्रति सहज रूप से अनुभव करते हैं। गुरु की उपस्थिति आत्मा में निहित अदृश्य शक्ति को जाग्रत करती है, जो किसी भी व्यक्ति के जीवन में अप्रत्याशित परिवर्तन ला सकती है।
गुरु का शाश्वत स्वरूप एवं शास्त्रों में उनका महत्व
गुरु की अवधारणा विभिन्न धर्मों और शास्त्रों में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी गई है, यद्यपि इसका स्वरूप प्रत्येक परंपरा में भिन्न-भिन्न रूप से प्रकट होता है। गुरु केवल एक शिक्षक नहीं हैं, बल्कि उनसे कहीं अधिक हैं। वे ऐसे मार्गदर्शक हैं, जो हमें आध्यात्मिक मूल्यों की सीख देते हैं। उदाहरण के लिए, सिख धर्म में गुरु के वचन और शिक्षाओं को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। ‘सिख’ शब्द का अर्थ ‘शिष्य’ होता है। प्रमुख सिख ग्रंथ, गुरु ग्रंथ साहिब, को ‘जीवित गुरु’ माना जाता है।यह ज्ञान का स्वरूप है, जो प्रबुद्ध गुरुओं की वाणी के रूप में हमारे लिए मार्गदर्शन करता है।
चर्चित गुरु-शिष्य संबंध
हिंदू शास्त्रों में कई चर्चित गुरु और शिष्यों का उल्लेख है। क्या आप इन गुरु-शिष्य युगलों को उचित ढंग से मिलान कर सकते हैं?
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श्रीराम |
दत्तात्रेय |
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नचिकेता |
परशुराम |
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कर्ण |
देवर्षि नारद |
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श्रीकृष्ण |
वशिष्ठ |
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वाल्मिकी |
सांदीपनि |
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परशुराम |
यमराज |
(उत्तर ब्लॉग के अंत में देखें)
वास्तव में, यदि हम ध्यानपूर्वक देखें, तो मानवता के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विकास में योगदान देने वाले महान व्यक्तियों में एक साझा संबंध है : उन सभी के पास असाधारण गुरु थे।
गुरु का आगमन
एक प्राचीन कहावत है—जब कोई साधक तैयार होता है, तब गुरु प्रकट होते हैं। देवर्षि नारद का मार्गदर्शन प्राप्त कर रत्नाकर (जो एक डाकू थे) बाद में महर्षि वाल्मीकि बने। उन्होंने ही भक्त प्रह्लाद, ध्रुव जैसे युवा साधकों को भी मार्गदर्शन प्रदान किया।
भगवान के अलग-अलग रूपों को देखने पर हम पाते हैं कि कभी-कभी वे उग्र मूर्ति (प्रचंड रूप : भगवान नरसिंह) और सौम्य मूर्ति (कोमल और दयालु रूप : श्रीराम) के रूप में प्रकट होते हैं। कभी-कभी वे गुरु स्वरूप में ज्ञान मूर्ति (भगवान हयग्रीव और भगवान दत्तात्रेय) के रूप में प्रकट होकर मानवता की आध्यात्मिक मार्ग पर उन्नति करने में सहायता करते हैं।
भगवान दत्तात्रेय: गुरु तत्त्व का साकार रूप
भगवान दत्तात्रेय को एक सार्वभौमिक शिक्षक और परमात्मा (परब्रह्म) के भौतिक रूप के रूप में देखा जाता है। वे आध्यात्मिक ज्ञान के स्रोत माने जाते हैं। कई आध्यात्मिक परंपराएँ अपनी जड़ें उन्हीं से जोड़ती हैं। उन्हें नाथ संप्रदाय के आदिगुरु या प्रथम शिक्षक के रूप में पूजा जाता है।
भगवान दत्तात्रेय का जन्म
भगवान दत्तात्रेय के जन्म का विशेष आध्यात्मिक महत्व है। महर्षि अत्रि की पत्नी, अनुसूया, अपने पतिव्रता धर्म और पवित्रता के लिए विख्यात थीं। एक दिन, त्रिदेव—भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान शिव—ने उनकी पवित्रता और समर्पण की परीक्षा लेने का निर्णय लिया। वे संन्यासी का वेश धारण कर उनके द्वार पर पहुँचे और भोजन का आग्रह किया, साथ ही कहा कि वे उन्हें निर्वस्त्र होकर ही भोजन करवाएँ।
अपने आध्यात्मिक बल और अडिग भक्ति से, माता अनुसूया ने तीनों देवताओं को शिशु रूप में बदल दिया और उनका पालन-पोषण किया। उनके दिव्य गुणों से प्रसन्न होकर, त्रिदेव ने उन्हें पुत्र स्वरूप भगवान दत्तात्रेय के जन्म का वरदान प्रदान किया। भगवान दत्तात्रेय में दिव्यता के तीनों पहलू समाहित हैं और वे तीन गुणों—सत्त्व (पवित्रता), रजस (उत्साह) और तमस (अज्ञान)—के प्रतिनिधि हैं। इसके साथ ही वे इन गुणों से परे जाकर ‘अवधूत’ के रूप में प्रसिद्ध हुए। ‘अवधूत’ अर्थात् वह मुक्त योगी जिसने सभी सांसारिक आसक्तियों का त्याग कर दिया हो।
भगवान दत्तात्रेय का प्रतीकात्मक स्वरूप
भगवान दत्तात्रेय का स्वरूप तीन मस्तकों वाला दिखाया गया है, जो त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनके छह हाथ हैं, जिनमें उन्होंने इन तीनों देवताओं के प्रतीक-चिह्न धारण किए हुए हैं। उनके साथ चार श्वान हैं, जो चार वेदों या सृष्टि की चार अवस्थाओं का प्रतीक हैं, और एक गाय है, जो पृथ्वी और धर्म का प्रतिनिधित्व करती है। उनका यह दिव्य गुरु-स्वरूप हमें स्मरण कराता है कि परम गुरु में दिव्यता के सभी पहलू समाहित हैं, और ये सभी मार्ग हमें एक ही परम सत्य की ओर ले जाते हैं।
भगवान दत्तात्रेय ने यह संदेश दिया कि यदि आपकी चेतना जागृत हो, तो समस्त ब्रह्मांड आपका गुरु है। जब हम समस्त सृष्टि में व्याप्त गुरु-तत्त्व की पहचान कर लेते हैं, तब हर अनुभव एक शिक्षा बन जाता है, प्रत्येक प्राणी एक संभावित मार्गदर्शक होता है, और प्रत्येक क्षण जागरण का अवसर बन जाता है।
योग और तंत्र को जोड़ने में भगवान दत्तात्रेय की भूमिका
श्री विद्या परंपरा के अनुसार, भगवान हयग्रीव (जो श्री विष्णु के अवतार हैं) ने श्री विद्या का ज्ञान महर्षि अगस्त्य को प्रदान किया। बाद में, भगवान शिव के आदेश पर महर्षि अगस्त्य ने यह ज्ञान भगवान दत्तात्रेय को दिया। इस प्रकार, भगवान दत्तात्रेय ने श्री विद्या के ज्ञान की आगे बढ़ाने में एक महत्त्वपूर्ण कड़ी बने। उन्होंने बाद में यह ज्ञान भगवान परशुराम को प्रदान किया।
गुरु दत्तात्रेय जयंती आध्यात्मिक उन्नति के लिए एक अत्यंत शक्तिशाली अवसर है। गुरु ध्यान और गुरु साधना का अभ्यास कर हम इस पावन दिवस के आध्यात्मिक लाभों को अधिकतम कर सकते हैं।
अपने आध्यात्मिक गुरु का सम्मान करने अथवा अपने आंतरिक गुरु को जागृत कर उनका मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए, आगामी दत्तात्रेय जयंती (4 दिसम्बर 2025) पर साधना ऐप में आयोजित की जाने वाली ‘गुरु साधना’ में भाग लीजिए।
गुरु साधना से संबंधित विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारा अगला ब्लॉग पढ़े।
प्रश्नोत्तरी के उत्तर : श्रीराम–वशिष्ठ, नचिकेता–यमराज, कर्ण–परशुराम, श्रीकृष्ण–सांदीपनि, परशुराम–दत्तात्रेय)
नोट: आपकी पसंदीदा गुरु–शिष्य की कहानी कौन-सी है? हमें कमेंट सेक्शन में अवश्य बताएं।
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