माँ अहोई की कृपा और आशीर्वाद

संपूर्ण विश्व एक परिवार है: वसुदैव कुटुम्बकम्

प्रकृति और उसके सभी प्राणी ब्रह्म (परमात्मा) के अनेक रूप मात्र हैं। पशु और पक्षियों को देवताओं के वाहन के रूप में पूजा जाता है। उदाहरण के लिए, उलूक (उल्लू) माँ लक्ष्मी का वाहन है, जबकि शेर माँ दुर्गा का वाहन है। गरुड़ देव (पक्षी), श्री विष्णु की सेवा करते हैं, और नंदी महाराज (बैल) महादेव के द्वारपाल हैं। इसी प्रकार, नदियों, पर्वतों और वृक्षों को भी देवी-देवताओं के रूप में पूजा जाता है। गंगा केवल एक नदी नहीं है, बल्कि मातृ-स्वरूपा हैं, जो मानवता के कल्याण के लिए भगवान शिव के जटाओं से प्रवाहित हुईं। इसी प्रकार, पीपल (अश्वथ वृक्ष) में भगवान विष्णु का वास होता है।

वैदिक दर्शन का एक मूल सिद्धांत है कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड आपस में जुड़ा हुआ है और सभी संवेदनशील प्राणियों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करना और उनकी देखभाल करना आवश्यक है। दैनिक परंपरा के रूप में चावल के आटे से कोलम और रंगोली बनाने के दो महत्वपूर्ण उद्देश्य हैं: सजावट और चींटियों एवं अन्य छोटे जीवों को भोजन प्रदान करना।

 हिंदू अनुष्ठान और पर्व मानव और अन्य प्राणियों के बीच संबंध को विशेष महत्व देते हैं। भारतीय लोककथाओं में यह मानव और प्राणी के पारस्परिक सम्बन्धों को दर्शाता है और हिंदू अनुष्ठानों एवं पर्वों से गहराई से जुड़ा हुआ है।

अहोई अष्टमी कब और कैसे मनाई जाती है?

कार्तिक माह में, कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अहोई अष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन महिलाएँ व्रत रखती हैं और माँ पार्वती के एक स्वरूप, माँ अहोई भगवती से अपने संतान की रक्षा के लिए प्रार्थना करती हैं। इस त्यौहार से जुड़ी एक प्रसिद्ध लोककथा भी प्रचलित है।

अहोई अष्टमी कथा

बहुत समय पहले, घने वन के समीप स्थित एक गाँव में एक साहूकार और उनकी दयालु पत्नी निवास करते थे। कार्तिक महीना था और दिवाली का उत्सव आने ही वाला था। महिला ने अपने घर की साज-सज्जा का निर्णय लिया। वह मिट्टी, लकड़ी और भूसा इकट्ठा करने के लिए जंगल गई।

मिट्टी निकालने के लिए खुदाई करते समय, उसका कुदाल गलती से एक बिल में गिर गया और उससे एक सिंह-शावक की मृत्यु हो गई। (कथा के कुछ संस्करणों में गौरैया के चूज़ों या साही के बच्चों का उल्लेख भी मिलता है।) वह अपराधबोध और दुख से व्यथित थी। इस घटना के एक वर्ष के भीतर, उसके सात पुत्र रहस्यमय रूप से गायब हो गए। गाँव के लोग सोचने लगे कि वे मर गए हैं या जंगली जानवरों ने उन्हें मार डाला।

दुख और पश्चाताप से भरी उस महिला को वह क्षण याद आया जब उसके कुदाल ने सिंह-शावक को मार दिया था। उसने अपनी यह पीड़ा गाँव की एक बुद्धिमान वृद्ध महिला के साथ साझा की। वृद्धा ने अपनी आँखें बंद कीं और कहा, “अपने कर्म का प्रायश्चित करो, पुत्री। अष्टमी के दिन व्रत रखो और माँ अहोई की कृपा प्राप्त करो। वे, जो सभी जीवों के बच्चों की रक्षक हैं, तुम्हारी सहायता के लिए भी अवश्य आएँगी।”

मन में आशा की किरण लिए, महिला ने अपने घर की दीवार पर शावक का चेहरा बनाया, व्रत रखा और अहोई माता की पूजा की। उसने इस दुर्घटना के लिए गहन पश्चाताप किया।

महिला की भक्ति से प्रसन्न होकर माँ अहोई प्रकट हुईं और उसके पुत्रों को दीर्घायु एवं स्वस्थ जीवन का वरदान दिया। कुछ समय बाद, महिला के सातों पुत्र घर लौट आए। उस दिन से प्रतिवर्ष कार्तिक कृष्ण अष्टमी के दिन माँ अहोई भगवती की पूजा करने की परंपरा आरंभ हुई। माताएँ अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए माँ अहोई से आशीष लेती हैं। गर्भवती महिलाएँ और संतान प्राप्ति की आकांक्षी स्त्रियाँ स्वस्थ संतान और प्रजनन क्षमता के लिए प्रार्थना करती हैं।

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महत्वपूर्ण तिथियाँ और समय

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अष्टमी तिथि प्रारंभ:
13 अक्टूबर 2025, दोपहर 12:24 बजे
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अष्टमी तिथि समापन:
14 अक्टूबर 2025, प्रातः 11:09 बजे
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अष्टमी पूजा का मुहूर्त:
13 अक्टूबर 2025, सायं 5:53 बजे से 7:08 बजे तक

🕰️ समय IST (भारतीय मानक समय) के अनुसार।

ℹ️ स्थानीय पंचांग/शहर के अनुसार समय में थोड़ा अंतर संभव है।

अहोई अष्टमी व्रत और पूजा की तैयारी

  1. अष्टमी के दिन, प्रातः स्नान के पश्चात संकल्प करें। अपने बच्चों के कल्याण के लिए व्रत रखने का संकल्प लें।

  2. साथ ही यह भी संकल्प करें कि आप अपना व्रत परिवार की परंपरा के अनुसार तारों या चंद्र दर्शन के बाद ही खोलेंगे।
  3. सूर्यास्त से पहले दीवार पर अहोई माँ का चित्र बनाएं।
  4. देवी के साथ-साथ साही (सेई) और उसके बच्चों की छवि भी बनाएं।
  5. वैकल्पिक रूप से, अहोई अष्टमी पूजा मुद्रित चित्र का भी प्रयोग किया जा सकता हैं।
  6. अष्टमी के चित्र के पास फर्श पर एक सुंदर रंगोली बनाएं।
  7. अब पूजा की दीवार के पास फर्श पर या किसी लकड़ी की स्टूल पर गेहूँ बिछा दें।
  8. पूजा स्थल के पास जल से भरा हुआ एक कलश रखें और उसे ढक्कन से ढक दें।
  9. इस कलश के ऊपर जल से भरा करवा रखें और करवे की नाल (सुराख) को घास के तिनके से बंद कर दें।

अहोई अष्टमी पूजा-विधि

  1. अहोई अष्टमी की पूजा सूर्यास्त के तुरंत बाद (परिवार की अन्य महिला सदस्यों के साथ) की जा सकती है।

  2. अहोई अष्टमी की कथा सुनें।
  3. माँ अहोई को घास की सात सीक और नैवेद्य अर्पित करें।
  4. बाद में यह अर्पण किसी वृद्ध महिला या ब्राह्मण को दक्षिणा के साथ दिया जा सकता है।
  5. कलश और करवे के जल से तारों या चंद्रमा को अर्घ्य दें।(अपने परिवार की परंपरा के अनुसार) और फिर सत्त्विक भोजन लेकर व्रत खोलें।