सूर्यदेव की पत्नी थीं संजना देवी। उनके दो संतानें थीं—पुत्र यमदेव और पुत्री यमुना। एक बार यमुना जी ने अपने भाई यमदेव को अपने घर भोजन के लिए निमंत्रण दिया। उन्होंने विनम्रता से कहा कि वे अपने सभी मित्रों सहित अवश्य पधारें। लेकिन यमदेव हर बार यही कहकर टाल देते—“कल आऊँगा, परसों आऊँगा।” कार्यव्यस्तता के कारण उन्हें अपनी बहन से मिलने का अवसर ही नहीं मिल पाया।
आख़िरकार एक दिन यमुना जी ने हठपूर्वक कहा—“भैया, अब आपको अवश्य आना होगा!” बहन के इस आग्रह पर यमदेव ने कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को उनके घर आने का वचन दिया।
निर्धारित दिन, यमदेव अपने मित्रों और इष्ट गणों सहित बहन के घर पहुँचे। उस दिन उन्होंने अपने यमपाश ( मृत्यु का फंदा, जिससे यमदेव जीवों के प्राण हरते हैं) से सभी प्राणियों को मुक्त कर दिया, ताकि किसी का अंत उस दिन न हो।
यमुना जी ने अपने भाई का प्रेमपूर्वक स्वागत किया। उन्होंने स्वयं अनेक प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन और मिठाइयाँ बनाईं। स्वर्ण थालियों में उन्हें परोसकर अत्यंत प्रसन्नता के साथ यमदेव को भोजन कराया। भोजन के पश्चात्, यमदेव ने अपनी बहन को वस्त्र और अलंकार भेंटस्वरूप दिए।
फिर उन्होंने स्नेहपूर्वक कहा, “हे बहन! जो भी तुम्हारी मनोकामना हो, मुझसे माँग लो।”
इस पर यमुना जी बोलीं, “भैया! मेरी यही इच्छा है कि आप प्रतिवर्ष आज के ही दिन मेरे घर भोजन करने आया करें। साथ ही, जो व्यक्ति आज के दिन अपनी बहन के हाथ से भोजन करें, उन्हें आप अपने पाश से सदा मुक्त रखें और उन्हें सुख-समृद्धि का आशीर्वाद दें।”
यमदेव ने मुस्कुराते हुए कहा, “हे सूर्यपुत्रि! जो मनुष्य आज के दिन तुझमें (अर्थात् यमुना नदी में) स्नान-तर्पण करेंगे, अपनी बहन के घर जाकर भोजन करेंगे और उसका पूजन करेंगे, उन्हें कभी भी यमलोक के द्वार का दर्शन नहीं करना पड़ेगा।”
उस दिन से, भाई दूज का यह शुभ पर्व भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। परंपरागत रूप से, कार्तिक शुक्ल द्वितीया को भाई और बहन यमुना में स्नान करते हैं। भाई अपनी बहन के घर जाता है। बहन भाई के माथे पर तिलक लगाती है और उसे प्रेमपूर्वक तैयार की गई मिठाइयाँ और भोजन खिलाती है। शास्त्रों मे उल्लेख है कि इन रीति-रिवाजों का पालन करने से समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।